‘समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः। प्रसन्नात्मेन्द्रियमनः स्वस्थ इत्यभिधीयते।।’
भावार्थः जब शरीर में वात, पित्त और कफ दोष संतुलित हों, पाचानाग्नि सम होती है, धातुएं, मल और कर्म-इन्द्रियां ठीक कार्य करती हैं तथा मन-आत्मा प्रसन्न हों-तब उसे ही ‘स्वस्थ’ कहा जाता है।
‘वातं पित्तं कफं चेति त्रयो दोषाः समासतः।’
चरक संहिता