स्वस्थ कौन?

‘समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः। प्रसन्नात्मेन्द्रियमनः स्वस्थ इत्यभिधीयते।।’

-सुश्रुत संहिता

भावार्थः जब शरीर में वात, पित्त और कफ दोष संतुलित हों, पाचानाग्नि सम होती है, धातुएं, मल और कर्म-इन्द्रियां ठीक कार्य करती हैं तथा मन-आत्मा प्रसन्न हों-तब उसे ही ‘स्वस्थ’ कहा जाता है।

शास्त्रीय वचन

‘वातं पित्तं कफं चेति त्रयो दोषाः समासतः।’

चरक संहिता

अर्थः जो वात गति है, पित्त अग्नि है, कफ स्निग्धता है-इनका संतुलन जीवन का आधार है।

जीवन सूत्र

अतिवाद, अधिक भोजन, रात्रि जागरण, क्रोध या तामसिक जीवन-इनसे जीवन त्रिदोष असंतुलन होता है। नियमित आहार-विहार ही संतुलन की कुंजी है।

छोटा-सा संकल्प

‘मैं आज अपने भोजन से एक ऐसा पदार्थ हटाऊंगा, जो मेरी प्रकृति के प्रतिकूल हो।‘

शुभमस्तु

आयुष्य मंदिरम् परिवार

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